एक धारा प्रवाहित कुण्डली में ऊर्जा किस रूप में संचित होती है?
[1988]
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(b) एक कुण्डली में ऊर्जा, $E =\frac{1}{2} LI ^2$ यहाँ $L$ स्वप्रेरण है और स्वप्रेरक में प्रवाहित होने वाली धारा I है। कुण्डली के चुम्बकीय क्षेत्र में ऊर्जा संचित होती है।
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एक धारा प्रवाहित कुण्डली जिसकी त्रिज्या 30 सेमी तथा प्रतिरोध $\pi^2 \Omega$ है को एक चुम्बकीय क्षेत्र $B =10^{-2} T$ वाले क्षेत्र में चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् घुमाया जातो है। यदि घुमाने की दर $200 rpm$ हो तो उत्पन्न प्रत्यावर्ती धारा का अधिकतम मान होगा:
एक कुंडली का स्व-प्रेरकत्व $L$ है। यह श्रेणी क्रम मे एक विद्युतबल्ब $B$ तथा एक ए.सी. (A.C.) स्रोत से जुड़ी है। इस बल्ब के प्रकाश की दीप्ति (तीव्रता) कम हो जायेगी, जब
एक ट्रांसफार्मर के प्राथमिक और द्वितीयक कुण्डलियों में फेरों की संख्याएँ क्रमानुसार 50 और 1500 हैं। प्राथमिक कुण्डली से सम्बन्धित चुम्बकीय फ्लक्स $\phi=\phi_0+4 t$, द्वारा व्यक्त होती है जबकि $\phi$ वेबर में है, समय $t$ सेकेण्ड में है और $\phi_0$ एक नियतांक है। द्वितीय कुण्डली से प्राप्त वोल्टता होगी-
किसी $ac$ परिपथ में एक प्रत्यावर्ती वोल्टता, $e =200 \sqrt{2}$ $\sin 100 t$ वोल्ट, को $1 \mu F$ धारिता के एक संधारित्र से जोड़ा गया है। इस परिपथ में विद्युत धारा का वर्ग-माध्य मूल मान होगा:
एक ट्रांसफॉर्मर की दक्षता $90 \%$ है तथा यह $200 V$ व $3$ किलोवाट की पावर सप्लाई पर काम कर रहा है। यदि द्वितीयक कुण्डली से $6$ ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है तो, द्वितीयक कुण्डली के सिरों के बीच विभवान्तर तथा प्राथमिक कुण्डली में विद्युत धारा का मान क्रमशः होगा