अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 - यह अधिनियम 1989 में दलितों तथा अन्य समुदायों की माँगों के जवाब में बनाया गया था। इस कानून में अपराधों की एक लम्बी सूची दी गयी है। यह कानून अपराधों के विभिन्न प्रकारों तथा दोषियों के जघन्य कृत्यों का उल्लेख करते हुए दोषियों को सजा देता है। इस कानून में कई स्तर के अपराधों के बीच फर्क किया गया है। यथा-
(1) इसमें शारीरिक रूप से खौफनाक और नैतिक रूप से निन्दनीय अपमान के स्वरूपों की सूची दी गई है। इसका मकसद ऐसे लोगों को सजा दिलाना है जो (i) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति को कोई अखाद्य अथवा गंदा पदार्थ पीने या खाने के लिए विवश करते हैं। (ii) अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति को नंगा करते हैं या उसे नंगा घुमाते हैं या उसके चेहरे अथवा देह पर रंग लगाते हैं या कोई और ऐसा कृत्य करते हैं जो मानवीय प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं है।
(2) इसमें ऐसे कृत्यों की सूची भी है जिनके जरिये दलितों और आदिवासियों को उनके साधारण संसाधनों से वंचित किया जाता है या उनसे गुलामों की तरह काम करवाया जाता है। परिणामस्वरूप इस कानून में प्रावधान किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति के नाम पर आवण्टित की गई या उसके स्वामित्व वाली जमीन पर कब्जा करता है या खेती करता है या उसे अपने नाम स्थानान्तरित करवा लेता है तो उसे सजा दी जायेगी।
(3) इस कानून में दलित एवं आदिवासी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों से बचने के लिए ऐसे लोगों को दण्डित किया जाये जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी महिला को अपमानित करने के लिए उसके साथ जोर-जबर्दस्ती करते हैं।
(4) आदिवासी कार्यकर्त्ता अपनी परम्परागत जमीन पर अपने कब्जे की बहाली के लिए इस कानून का सहारा लेते हैं।