लोकतांत्रिक राज्य में नागरिक को अपने व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास हेतु अधिकारों की आवश्यकता होती है । इस तरह अधिकार लोगों के वे तार्किक दावे हैं जिसे समाज से स्वीकृति एवं अदालतों द्वारा मान्यता मिलती है।
मौलिक अधिकार वैसे अधिकार जिसकी चर्चा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता एवं न्याय दिलाने का वायदा करता है। मौलिक अधिकार इन्हीं वायदों को पूरा करने का प्रयास है।
भारतीय नागरिकों के अधिकार इस प्रकार हैं-
(i) जीवन जीने का अधिकार-हर मनुष्य अच्छा जीवन जीना चाहता है । व्यक्ति इन सुविधाओं को माँग दावे के रूप में करता है । उन दावों जिनमें व्यक्त्वि विकास की भावना हो जीने का अधिकार कहलाता है। इसके विरुद्ध कोई व्यक्ति आत्महत्या करने का प्रयास करता है तो वह अपराध है और उस पर मुकदमा चलाया जायेगा।
(ii) विचार अभिव्यक्ति का अधिकार- अपने विचारों को हम भाषण देकर, पुस्तक लिखकर अभिव्यक्त कर सकते हैं । अपमान जनक शब्दों द्वारा नहीं।
(iii) संगठन बनाने का अधिकार नागरिकों को यह अधिकार है . कि वे अपने हित के लिए संगठन बना सकते हैं। ये संगठन सरकारी अथवा गैर-सरकारी स्तर पर बना सकते हैं । जैसे किसी शहर के कुछ लोग भ्रष्टाचार या प्रदूषण के खिलाफ अभियान चलाने के लिए संगठन बना सकते हैं। किसी कारखाने में मजदूर संघ का निर्माण हो सकता है ।
(iv) धार्मिक स्वतंत्रता-भारत में नागरिकों को किसी भी धर्म को ग्रहण करने उसका प्रचार-प्रसार तथा उसके लिए अन्य कार्य करने का अधिकार दिया गया है।
(v) संपत्ति का अधिकार प्रत्येक मनुष्य को धन अर्जन करने, जमा करने का अधिकार है।
(vi) शिक्षा का अधिकार प्रत्येक नागरिक का यह अधिकार है कि किसी भी शिक्षण संस्था में जाति, धर्म, लिंग, भाषा, क्षेत्र इत्यादि के भेदभाव के बिना दाखिला ले सकते हैं और शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं।
(vii) वैवाहिक स्वतंत्रता का अधिकार-कोई भी बालिग लड़का व लड़की अपनी मर्जी से विवाह कर सकते हैं।