अंग्रेजों द्वारा राजस्थान के शासकों से संधियाँ करने के कारण-मुगल साम्राज्य के पतन और मराठों द्वारा फैलाई गई अराजकता ने राजपूत शासकों, सामंतों तथा प्रजा में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक अव्यवस्था उत्पन्न कर दी थी। ऐसी स्थिति में अंग्रेज अपनी शक्ति के विस्तार एवं अन्य राजनीतिक-आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए राजपूत शासकों से मैत्री करने के लिए उत्सुक हुए। संधियों का समय-सन् 1817 से 1818 ई. की अवधि में राजपूत शासकों से अंग्रेज सरकार ने संधियाँ करनी शुरू की। राजस्थान के राज्यों में सर्वप्रथम 29 सितम्बर, 1803 को भरतपुर राज्य ने अंग्रेजों के साथ संधि स्वीकार कर ली। 1818 तक सिरोही राज्य को छोड़कर सभी राज्यों ने कंपनी । के संरक्षण को स्वीकार कर लिया और 1823 ई. में सिरोही ने भी यह संधि स्वीकार कर ली। इस प्रकार एक ही वर्ष में लगभग सम्पूर्ण राजस्थान अंग्रेजों के संरक्षण में आ गया। संधियों के परिणाम-इन संधियों के निम्न प्रमुख परिणाम निकले।
- 1818 की संधियों के परिणामस्वरूप अंग्रेजों को दिए जाने वाले खिराज से देशी शासकों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई।
- इन संधियों से अंग्रेजों को यहाँ के शासकों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का अवसर मिल गया।
- अंग्रेजों ने शासकों को सामन्तों के विशेषाधिकार तथा शक्ति नष्ट करने हेतु दबाव डाला। इससे सामन्तों की प्रतिष्ठा
- को हानि पहुंची।
- स्वदेशी व्यापार, उद्योग व हस्तशिल्प नष्ट होने लगे।
- राजस्थान में ईसाई मिशनरियों के प्रवेश से ईसाई धर्म का प्रचार प्रारंभ हुआ जिसकी प्रतिक्रिया में 1857 का स्वतंत्रता संचार किया |