जनसंख्या में वृद्धि की विशेषताएँ मुख्यतः चार हैं-(i) जन्मदर (ii) मृत्युदर (iii) प्रवास तथा (iv) व्यावसायिक संरचना।
(i) जन्मदर-एक वर्ष में प्रति हजार व्यक्तियों में जितने बच्चों का जन्म होता है, उसे ‘जन्मदर’ कहते हैं। यह वृद्धि का एक प्रमुख घटक है क्योंकि भारत में हमेशा जन्मदर मृत्युदर से अधिक रहा है। भारत की आबादी 1951 में 3.60 लाख से बढ़कर 2001 में 10.280 लाख हो गई। वार्षिक वृद्धि 1.93% के हिसाब से बढ़ी।
(ii) मृत्युदर-एक वर्ष में प्रति हजार व्यक्तियों के मरने की संख्या को मृत्युदर कहा जाता है । मृत्युदर में तेजी से गिरावट भारत की जनसंख्या में वृद्धि की दर का प्रमुख कारण है। 1980 तक उच्च जन्मदर में धीमी गति से एवं मृत्युदर में तीव्र गति से गिरावट के कारण जन्मदर और मृत्युदर में काफी बड़ा अन्तर आ गया है । इसके कारण जनसंख्या में विस्फोट हो गया।
(iii) प्रवास-लोगों का एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में चले जाने को प्रवास कहते हैं। प्रवास केवल जनसंख्या के आकार को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि उम्र एवं लिंग के वृद्धि में ग्रामीण-नगरीय प्रवास के कारण शहरों तथा नगरों की जनसंख्या में नियमित वृद्धि हुई है। 1951 में कुल जनसंख्या की 17.29% नगरीय जनसंख्या थी, जो 2001 में बढ़ कर 27.78% हो गई । एक दशक (1991 से 2001) के भीतर 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगरों की संख्या 23 से 35 हो गयी है।
(iv) व्यावसायिक संरचना-आर्थिक रूप से क्रियाशील जनसंख्या का प्रतिशत विकास का एक महत्त्वपूर्ण सूचक है। विभिन्न प्रकार के व्यवसायों के अनुसार किए गए जनसंख्या के आर्थिक वितरण को व्यावसायिक संरचना कहते हैं । भारत एक कृषि प्रधान देश है अत: 64% जनसंख्या गाँवों में कृषि कार्य पर आधारित है । शहरों में जीविका-निर्वाह के साधनों के बढ़ने से सुरक्षा के ख्याल से भी नगरों की संख्या बढ़ रही