भारतीय क्रांतिकारियों में उभरती हुई राष्ट्रीयता की भावना को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने न्यायाधीश सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में रॉलेट आयोग का गठन किया। भारतीय नेताओं के विरोध के बावजूद भी यह विधेयक 8 मार्च, 1919 को लागू कर दिया गया। इस कानून का विरोध भारतीयों ने जबर्दस्त रूप से किया। इस कानून के अंतर्गत एक विशेष न्यायालय का गठन किया गया जिसके निर्णय के विरूद्ध कोई अपील नहीं किया जा सकता था। इस कानून के द्वारा सरकार किसी भी व्यक्ति को संदेह के आधार पर गिरफ्तार करने उसपर मुकदमा चला सकती थी। गांधीजी ने इस कानून को अनुचित स्वतंत्रता का हनन करनेवाला तथा व्यक्ति के मूल अधिकारों की हत्या करनेवाला बताया।