धार्मिक वर्चस्व को रोकने के लिए भारतीय राज्य कई तरह के काम करता है। यथा -
(1) धर्म से पृथकता- भारतीय राज्य, प्रथमतः, स्वयं को धर्म से दूर रखता है। भारतीय राज्य की बागडोर न तो किसी धार्मिक समूह के हाथों में है और न ही राज्य किसी एक धर्म को समर्थन देता है। भारत में कचहरी, थाने, सरकारी विद्यालय और दफ्तर जैसे सरकारी संस्थानों में किसी खास धर्म को प्रोत्साहन देने या उसका प्रदर्शन करने की अपेक्षा नहीं की जाती है।
(2) अहस्तक्षेप की नीति- धार्मिक वर्चस्व को रोकने के लिए भारतीय धर्मनिरपेक्षता का दूसरा तरीका है- अहस्तक्षेप की नीति। इसका मतलब है कि सभी धर्मों की भावनाओं का सम्मान करने, धार्मिक क्रियाकलापों में दखल न देने के लिए, राज्य कुछ खास धार्मिक समुदायों को कुछ विशेष छूट भी देता है। उदाहरण के लिए, सिक्खों को हैलमेट पहनने के कानून में रियायत देना क्योंकि पगड़ी पहनना सिक्ख धर्म की प्रथाओं के मुताबिक महत्वपूर्ण है। अतः इस धार्मिक आस्था में दखलंदाजी से बचने के लिए राज्य ने कानून में रियायत दे दी है।
(3) हस्तक्षेप की नीति- धार्मिक वर्चस्व को रोकने के लिए भारतीय धर्मनिरपेक्षता का तीसरा तरीका हस्तक्षेप करने का है। मौलिक अधिकारों के हनन को रोकने के लिए राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है क्योंकि ये मौलिक अधिकार धर्मनिरपेक्ष सिद्धान्तों पर आधारित हैं। राज्य का हस्तक्षेप सहायता के रूप में भी हो सकता है। जैसे- धार्मिक समुदायों के स्कूलों व कालेजों को सीमित आर्थिक सहायता प्रदान करना।