प्रजनन में डी. एन. ए. प्रतिकृति प्राणी के अस्तित्व के लिए बहुत आवश्यक है। यह स्पीशीज़ में पाई जाने वाली विभिन्न विशेषताओं के अस्तित्व को बना कर रखने में सहायक है। चाहे डी. एन. ए. प्रतिकृति की प्रणाली पूरी तरह से यथार्थ नहीं है पर फिर भी इसमें विभिन्नता बहुत धीमी गति से उत्पन्न होती है। इसमें नई विभिन्नता के साथ-साथ पुरानी पीढ़ियों की विभिन्नताएँ संग्रहित रहती हैं इसलिए समष्टि के दो जीवों में विभिन्नताओं के पैटर्न भी काफी अलग होते हैं। इसके द्वारा दो या अधिक एकल जीवों का विभिन्नताओं के नए संयोजन उत्पन्न होते हैं क्योंकि जब यह एकल जीव लैंगिक जनन करते हैं तो इस प्रक्रम में दो विभिन्न जीव भाग लेते हैं। डी. एन. ए. का प्रतिकृति पीढ़ियों तक गुणों को आगे लेकर चलती है। इससे शारीरिक डिजाइन में समता बनी रहती है पर नई विभिन्नताओं के कारण इसमें परिवर्तन आते रहते हैं। इससे प्राणी का अस्तित्व बना रहता है चाहे उसमें कुछ अंतर आ जाता है। डी. एन. ए. आनुवंशिक गुणों का संदेश है जो जन्म से संतान को प्राप्त होता है। इसके केंद्रक में प्रोटीन संश्लेषण के लिए सूचना विद्यमान होती है। सूचना के बदल जाने पर प्रोटीन भी बदल जाएगी जिस कारण शारीरिक अधिकल्प में भी विविधता उत्पन्न हो जाती है। प्रोटीन ही किसी जीव में शारीरिक अधिकल्प के लिए जिम्मेदार होती हैं। डी. एन. ए. प्रतिकृति बनने के साथ-साथ दूसरी कोशिकीय संरचनाओं का सृजन भी होता है। जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं के कारण डी. एन. ए. की प्रतिकृति में कुछ विभिन्नता उत्पन्न हो जाती है।