किसी समय दत्त स्थिति से किसी बाद के समय के ज्यामितीय रचना तथा तरंगाग्र की स्थिति के निर्धारण को हाइगेंस सिद्धान्त की महत्ता कहते हैं।
धारणाएँ- (i) दत्त तरंगाग्र पर जिसे प्रारम्भिक तरंगाग्र कहते हैं, प्रत्येक बिन्दु द्वितीयक तरंगों का स्रोत होता है और सभी सम्भव दिशाओं में एक ही चाल से एक ही प्रकार मूल प्रकाश स्रोत का विक्षोभ प्रसारित करती है।
(ii) किसी समय तरंगाग्र की नई स्थिति उस समय द्वितीयक तरंगिकाओं पर स्पर्शजा खींचने से प्राप्त होती है।