हिन्द चीन में फ्रांसीसी उपनिवेशवाद के छिट-फुट विद्रोह का सामना तो प्रारंभिक दिनों से ही झेलना पड़ रहा था। परन्तु 20वीं शताब्दी के शुरू में यह और मुखर होने लगा। वहाँ राष्ट्रवाद का विकास निम्न प्रकार से हुआ
1930 ई. में फान-बोई-चाऊ ने ‘दुईतान होई’ नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की जिसके नेता कुआंग थे। फान-बोई-चाऊ ने ‘द हिस्ट्री ऑफ द लॉस ऑफ वियतनाम’ लिखकर हलचल पैदा कर दी।
1905 में जापान द्वारा रूस को हटाया जाना हिन्द चीनियों के लिए प्रेरणास्रोत बन गया।
रूसो एवं माण्टेस्क्यू जैसे फ्रांसीसी विचारों के विचार उन्हें उद्वेलित कर रहे थे।
राष्ट्रवादी नेता फान-चू-त्रिन्ह ने राष्ट्रवादी आन्दोलन के स्वतंत्रीय स्वरूप को गणतंत्रवादी बनाने का प्रयास किया।
जापान में शिक्षा प्राप्त करने गए छात्रों ने फान-चू-त्रिन्ह के विचारों से प्रभावित होकर वियतनाम कुवान फुक होई नामक संगठन की स्थापना की।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुई ज्यादतियों के कारण 1914 में ही देशभक्तों ने एक “वियतनामी राष्ट्रवादी दल” नामक संगठन बनाया जिसका पहला अधिवेशन कैण्टन में हुआ।
1917 में हो-ची-मिन्ह नामक एक वियतनामी छात्र ने पेरिस में ही साम्यवादियों का एक गुट बनाया।
1925 में हो-ची मिन्ह ने साम्यवाद से प्रेरित होकर ‘वियतनामी क्रान्तिकारी दल’ बनाया।
1930 में वियतनाम के बिखरे राष्ट्रवादी गुटों को एकजुट कर ‘वियतनामकांग सान इंग’ की स्थापना की।
1930 के दशक की विश्वव्यापी मंदी ने भी राष्ट्रवाद के विकास में योगदान दिया। क्योंकि हिन्द-चीन में बेरोजगारी बढ़ती जा रही थी। इस स्थिति से परेशान किसान भी साम्यवाद को अपना . रहे थे और राष्ट्रवादी आन्दोलन जोर पकड़ता जा रहा था।
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