पृथ्वी पर जल विचित्र रूप में वितरीत है । लगभग 71% जल तो समुद्र अपने गर्भ में रखे हुए है । यह जल न तो कृषि के काम आता है और ने पीने के । पीने योग्य जल केवल छत्रक, पहाड़ों पर के बर्फ भूमिगत जल, झील, नदियाँ, वायुमंडल के जल से कृषि कार्य तो होता ही है, पीने के काम भी आता है ।
ये ही जल मानवोपयोगी हैं। लेकिन इनका दोहन आसान नहीं। भूमिगत जल को कुआं खोद कर या हँड पंप धंसा कर पानी निकालते हैं। वायुमंडल के जल के लिये बादल बनने, फिर वर्षा होने तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। छत्रक और पहाड़ों पर के बर्फ गर्मी आने पर ही गलते हैं और नदियों के माध्यम से हम तक पहुँचते हैं ।
नदियाँ भी हर गाँव में नहीं होती और उनसे भी जल निकालकर हर गाँव तक पहुँचाना एक कठिन कार्य है । सबसे आसानी से प्राप्त होनेवाला जल भूमि के अन्दर का जल है । तालाब का जल भी उपयोग करना आसान होता है । अतः हमें इन्हीं जलों को संरक्षिता करना चाहिए। भूमि के अन्दर जल की कमी न होने पाये या फिर बढ़ता जाय इसके लिए वर्षा जल को किसी तरकीब से भूमि के अन्दर तक पहुंचा दिया जाय ।
छत पर के वर्षा जल को पाइपों के सहारे भूमि के जल स्तर तक पहुँचा सकते हैं या तालाब और गड्ढों में जल एकत्र करेंगे जो धीरे-धीरे रीस-रीसं. कर भूमि के अन्दर जाते हैं। – यदि जल एक बार समाप्त हो जाय तो बहुत-बहुत दिनों तक प्रतीक्षा के बाद जल प्राप्त होता है । इसी कारण जल का संरक्षण आवश्यक है।