ज्योतिराव फूले जाति व्यवस्था को मनुष्यों की समानता के खिलाफ मानते थे। उन्होंने जाति व्यवस्था को पूरी तरह से नकार दिया । अछूत वर्ग के खिलाफ अमानवीय व्यवहार और उन्हें सामान्य मानव अधिकार से वंचित रखने की स्थिति ने फूले को जाति प्रथा का प्रबल विरोधी बना दिया था। असमानता के खिलाफ लोगों को जगाना ही उनका मूल उद्देश्य था।
फूले का मानना था कि आर्य विदेशी हैं और भारत के मूल निवासियों को हराकर उन्हें निम्न मानने लगे हैं। उनके अनुसार यह धरती यहां के देशी लोगों की यानी कथित निम्न जाति के लोगों की है।