सोलहवीं शतादी से क्षेत्रीय भाषाओं में लेखन कार्य होने लगा था । सत्रहवीं शताब्दी के आते-आते इसमें काफी परिपक्वता आ गई । संगीतमय काव्य भी रचे गये । बंगला, उड़िया, हिन्दी, गजस्थानी तथा गुजराती भाषाओं के काव्य में राधाकृष्ण एवं गोपियों की लीला तथा भागवत की कहानियों का भरपूर उपयोग हुआ । इसी काल में मल्लिक महम्मद जायसी ने हिन्दी में ‘पद्मावत’ लिखा । इसका बंगला में भी अनुवाद हुआ । अब्दुर्रहीम खानखाना ने कृष्ण को सामने रख अनेक काव्यमय रचनाएँ की।
तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना अवधी में की जिसमें भोजपुरी शब्दों का खुब उपयोग हुआ है । सूरदास ने ब्रज भाषा में कृष्ण के बाल रूप का वर्णन किया । यह इनका महत्त्वपूर्ण योगदान था।
दक्षिण भारत में मलयालम भाषा की साहित्यिक परम्परा का प्रारंभ मध्यकाल में ही हुआ। महाराष्ट्र में एकनाथ और तुकाराम ने मराठी भाषा में काफी कुछ लिखा।
बिहार अनेक भाषाओं का क्षेत्र है । यहाँ की कुछ भाषाएँ पूरे देश में । बोली-समझी जाती हैं। बिहार के चन्द्रेश्वर मध्यकाल के नामी टीकाकार थे। इन्होंने सूफी संतों से प्रभावित होकर धर्म की व्याख्या की।
खासकर बिहार हिन्दी भाषी क्षेत्र है । यहाँ हिन्दी की उत्पत्ति संस्कृत के अपभ्रंश के रूप में हुई । अन्य भाषाओं में, जिन्हें शुद्ध क्षेत्रीय कहा जा सकता है, वे हैं भोजपुरी, मगही, मैथिली और उर्दू आदि । मैथिली भाषा को कवि कोकिल विद्यापति ने बहुत ऊँचाई पर पहुंचा दिया । मंडन मिश्र तथा भारती मिथिला की ही देन थे। भोजपुरी का क्षेत्र बहुत विस्तृत हैं।