शासक और उनके करीन्दे, धनी व्यापारी और ग्रामीण लोगों के खान-पान में सदा से अंतर रहा है। वह मध्यकाल में भी था और आज … है। मध्य काल के राज्य परिवार तथा सम्पन्न लोग जहाँ पोलाव, बिरयाना, कोरमा, फिरनी, अंगूर आदि खाते थे, सो आज भी खाते हैं।
गाँवों में खाने की वे ही वस्तुएँ होती थीं, जो लोग उपजाते थे । चावल ‘ का मौसम रहा तो चावल और गेहूँ का मौसम रहा तो रोटी खाना मध्यमाल में भी था और आज भी है । आम, अमरूद, केला, शकरकंद तब भी खाते थे और आज भी खाते हैं।
उस दौर में हिन्दू और मुसलमानों के पहनावें में अन्तर था । हिन्दू जहाँ धोती पहनते थे, वहीं मुसलमान लूँगी पहनते थे । गंजी, करता दोनों धर्म के लोग पहनते थे । आज वह भेद मिट चुका है। हिन्दु भी लँगी पहनने लगे हैं और ग्रामीण मुसलमान धोती पहनते हैं । बहुत दिनों तक साथ-साथ रहने के कारण दोनों के खान-पान और पहनावा में बहुत अंतर नहीं रह गया है।