मंदिर निर्माण की नागर और द्राविड़ शैलियों का उपयोग साथ-साथ ही हुआ । नागर शैली जहाँ उत्तर भारत में प्रचलित थी वहीं द्राविड़ शैली दक्षिण भारत में प्रचलित थी । नागर शैली के मंदिर आधार से शीर्ष तक आयताकार एवं शंक्वाकार संरचना से बने होते थे । शीर्ष क्रमशः नीचे से ऊपर पतला होता जाता है, जिसे शिखर कहा जाता था । प्रधान देवता की मूर्ति जहाँ स्थापित होती थी, उसे गर्भ गृह कहते थे । मंदिर अलंकृत स्तंभों पर टिका होता था। चारों ओर प्रदक्षिणा पथ भी होता था।
द्राविड़ शैली की विशेषता थी कि गर्भ गृह के ऊपर कई मंजिलों का निर्माण होता था जो न्यूनतम 5 और अधिकतम 7 मंजिल तक होते थे । स्तंभों पर टिका एक बड़ा कमरा होता था, जिसे मंडपम कहा जाता था । गर्भ गृह के सामने अलंकृत स्तंभों पर टिका एक बडा कक्ष होता था, जिसमें धार्मिक अनुष्ठान किये जाते थे । प्रवेश द्वार भव्य और अलंकृत होता था । इसे गोपुरम कहा जाता था ।