(a) जनद्रव्य के सातत्य का सिद्धांत आगस्ट वीजमान (1834-1914) ने 1886 में प्रकाशित किया था। इसके अनुसार जननकोशाओं (शुक्राणु एवं अण्डाणु) का द्रव्य एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में, शरीर के अन्य परिवर्तनों से अप्रभावित रहकर जाता रहता है। इस प्रकार यह उपार्जित लक्षणों की वंशागति की संभावना का खंडन करता है एवं नव-डार्विवाद का आधार है।