समाजवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसने आधुनिक काल में समाज को एक नया रूप प्रदान किया। औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप समाज में पूँजीपति वर्गों द्वारा मजदूरों का लगातार शोषण अपने चरमोत्कर्ष पर था। उन्हें इस शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने तथा वर्ग विहीन समाज की स्थापना करने में समाजवादी विचारधारा ने अग्रणी भूमिका अदा की। समाजवाद उत्पादन में मुख्यतः निजी स्वामित्व की जगह सामूहिक स्वामित्व या धन के समान वितरण पर जोर देती है। यह एक शोषण उन्मुक्त समाज की स्थापना चाहता है। अतः समाजवादी व्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसके अन्तर्गत उत्पादन के सभी साधनों, कारखानों तथा विपणन में सरकार का एकाधिकार हो। ऐसी व्यवस्था में उत्पादन निजी लाभ के लिए न होकर सारे समाज के लिए होता है।
समाजवादी विचारधारा की उत्पत्ति 18वीं शताब्दी के प्रबोधन आन्दोलन के दार्शनिकों के लेखों में ढूँढे जा सकते हैं। आरंभिक समाजवादी आदर्शवादी थे, जिनमें सेंट साइमन, चार्ल्स फूरिए लुई ब्लां तथा रॉबर्ट ओवेन के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। समाजवादी आंदोलन और विचारधारा मुख्यतः दो भागों में विभक्त की जा सकती है – (i) आरंभिक समाजवादी अथवा कार्ल मार्क्स के पहले के समाजवादी (ii) कार्ल मार्क्स के बाद के समाजवादी। आरंभिक समाजवादी आदर्शवादी या “स्वप्नदर्शी” (Utopian) समाजवादी कहे गए। वे उच्च और अव्यावहारिक आदर्श से प्रभावित होकर “वर्ग संघर्ष” की नहीं बल्कि “वर्ग समन्वय” की बात करते थे। दूसरे प्रकार के समाजवादियों में फ्रेडरिक एंगेल्स, कार्ल मार्क्स और उनके बाद के चिंतक जो ‘साम्यवादी’ कहलाए ने वर्ग समन्वय के स्थान पर “वर्ग संघर्ष” की बात कही। इन लोगों ने समाजवाद की एक नई व्याख्या प्रस्तुत की जिसे “वैज्ञानिक समाजवाद” कहा जाता है।
19वीं शताब्दी में समाजवादी विचारधारा का तेजी से प्रसार हुआ। फ्रांस में लुई ब्लाँ ने सामाजिक कार्यशालाओं की स्थापना कर पूँजीवाद की बुराइयों को समाप्त करने की बात कही। जर्मनी भी समाजवादी विचारधारा से अपने को अलग नहीं रख सका। रूस में भी समाजवाद ने अपनी जड़ें जमा ली। कार्ल मार्क्स ने आरंभिक समाजवादियों से प्रेरणा लेकर ही नई समाजवादी व्याख्या प्रस्तुत की।