$S_N1$ तथा $S_N2$ अभिक्रियाओं में अन्तर बताइए।
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क्र.सं. $S _{ N } 1$ अभिक्रिया $S _{ N } 2$ अभिक्रिया
$1.$ यह अभिक्रिया दो पदों में होती है। यह एक पद में होती है।
$2.$ $R-X$ की क्रियाशीलता का क्रम $3^{\circ}>2^{\circ}>1^{\circ}> CH _3- X$ होता है। $R-X $ की क्रियाशीलता का क्रम $CH _3 X >1^{\circ}>2^{\circ}>3^{\circ}$ होता है।
$3.$ ध्रुवीय विलायक में अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है क्योंकि $R-X$ का आयनन होकर कार्बोकैटायन आसानी से बन जाता है। अध्रुवीय विलायक में अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है क्योंकि इसमें पहले आयनन नहीं होता है।
$4.$ इसमें कार्बोकैटायन मध्यवर्ती बनता है। इसमें काल्पनिक संक्रमण अवस्था मानी जाती है।
$5.$ इसमें रेसिमीकरण होता है। इसमें विन्यास का प्रतीपन होता है।
$6.$ अभिक्रिया का वेग हैलोऐल्केन की सान्द्रता पर निर्भर करता है नाभिकस्नेही की सान्द्रता पर नहीं। अभिक्रिया का वेग हैलोऐल्केन तथा नाभिकस्नेही दोनों की सान्द्रता पर निर्भर करता है।
$7.$ यह प्रथम कोटि अभिक्रिया है। यह द्वितीय कोटि अभिक्रिया है।
$8.$ इसमें कार्बोकैटायन बनने के कारण यदि संभव हो तो पुनर्विन्यास होता है। इसमें पुनर्विन्यास नहीं होता है।
$9.$ नाभिकस्नेही की प्रकृति तथा सान्द्रता का अभिक्रिया के वेग पर कोई प्रभाव नहीं होता है क्योंकि वेग निर्धारक पद में नाभिकस्नेही उपस्थित नहीं होता है। नाभिकस्नेही की सान्द्रता बढ़ने पर $SN ^2$ अभिक्रिया का वेग बढ़ता है तथा नाभिकस्नेही की इलेक्ट्रॉन देने की प्रवृत्ति बढ़ने पर भी अभिक्रिया का वेग बढ़ता है।
$10.$ वेग समीकरण $= k[RX]$ वेग समीकरण $= k [ RX ][: \overline{ N } u ]$
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