तत्कालीन राज्यों की प्रशासनिक व्यवस्था आज की प्रशासनिक व्यवस्था से बहुत अर्थों में भिन्न थी । आज प्रजातांत्रिक व्यवस्था है जबकि उस समय राजतंत्र था । उस समय के अधिकारी राजा की मर्जी से नियुक्त होते थे जबकि आज प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ता है।
तत्कालीन केन्द्रीय शासन से सम्बद्ध अनेक पदाधिकारियों का उल्लेख मिलता है । विदेश विभाग के प्रधान को ‘संधि-विग्रहक’ कहा जाता था,जबकि आज केन्द्रीय सरकार में खासतौर में एक विदेश विभाग है, जिसकी देख-रेख प्रधान सचिव के हाथ में होता है । इसके ऊपर एक विदेश मंत्री होता है। आज के राजस्व विभाग को वित्त मंत्री के अधीन रखा गया है। इस विभाग में भी मुख्य सचिव के नीचे अधिकारियों, कर्मचारियों का एक समूह काम करता है। ‘आयकर’ विभाग राजस्व विभाग का ही एक अंग है। भाण्डारिक जैसा अधिकारी आज नहीं हुआ करते।
उस समय ‘भांडारिक’ इसलिए हुआ करते थे क्योंकि कर अनाज के रूप में भी वसूला जाता है । उस समय महादण्डनायक होता था जो पुलिस विभाग का प्रधान होता था। लेकिन आज दण्ड देने के लिए न्यायापालिका अलग है। और पुलिस विभाग अलग है। आज पुलिस का काम दोषियों को पकड़ना मात्र है। दंड न्यायपालिकाएं दिया करती हैं। इस प्रकार देखते हैं कि तत्कालीन राज्यों की प्रशासनिक व्यवस्था आज की प्रशासनिक व्यवस्था से कई अर्थों में भिन्न थी।