जब भारत में ब्रिटिश शासन को स्थिरता प्राप्त हुई तब उन्हें बुनियादी तौर पर रक्षा, प्रशासन, आवास और वाणिज्य जैसी इमारतों की पूर्ति के लिए भवनों एवं इमारतों की जरूरत होने लगी । ‘उन्नीसवीं सदी से शहरों में बनने वाली इमारतों में किले, सरकारी दफ्तरों, शैक्षणिक संस्थान, धार्मिक, इमारतें, व्यावसायिक भवन आदि प्रमुख थीं। ये इमारतें अंग्रेजों की श्रेष्ठता, अधिकार, सत्ता की प्रतीक तथा उनकी राष्ट्रवादी विचारों का प्रतिनिधित्व भी करती हैं।
सार्वजनिक भवनों के लिए मोटे तौर पर उन्होंने तीन स्थापत्य शैलियों का ‘प्रयोग किया। इनमें से एक ‘ग्रीको रोमन स्थापत्य शैली’ थी। मूल रूप से रोम की इस भवन निर्माण शैली को अंग्रेजों ने यूरोपीय पुनर्जागरण के दौरान पुनर्जीवित किया था । बड़े-बड़े स्तम्भों के पीछे रेखागणितीय संरचनाओं एवं गुम्बद का निर्माण इस शैली की विशेषता थी। अन्य शैलियां थीं—’गॉथिक शैली’ एवं ‘इंडो-सारासेनिक शैली’।