विद्रोह के बाद 1858 में ब्रिटिश संसद ने कानून पास करते हुए भारत से ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन को समाप्त कर सीधे ब्रिटेन की सरकार के शासन को स्थापित किया। भारत के सभी शासकों को भरोसा दिया गया कि भविष्य में उनके राज्य को उनसे छीना नहीं जाएगा। सैनिक ढांचे में बदलाव करते हुए यूरोपीय सैनिकों की संख्या बढ़ा दी गयी।
उनका अनुपात 2:5 हो गया यानी प्रत्येक पांच भारतीय सैनिकों पर दो गोरे सिपाहियों को लगाया गया। अवध, बिहार, मध्य भारत एवं दक्षिण भारत से सिपाहियों की भर्ती करने की जगह गोरखा, सिक्ख और पठान का ज्यादा संख्या में भर्ती किया गया । इन तीन समूहों के सैनिकों ने विद्रोह को दबाने में कम्पनी को काफी सहयोग दिया था। यह भी तय किया उन्होंने की भारतीयों के धार्मिक एवं सामाजिद जीवन के साथ छेड़-छाड़ नहीं की जाएगी।