1970-80 के दशकों में आदिवासियों ने न केवल ‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾ के लिए आवाज उठायी, बल्कि अपनी जमीन को हासिल करने के लिए भी ‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾ चलाए।
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बराबरी, आंदोलन
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  • 1
    आदिवासी कार्यकर्ता अपनी परंपरागत जमीन पर अपने कब्जे की ‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾ के लिए ‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾ के अधिनियम का सहारा लेते हैं।
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    संवैधानिक रूप से आदिवासियों की जमीन को किसी ‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾ व्यक्ति को नहीं बेचा जा सकता।
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    हमारे संविधान में ऐसे कई सिद्धान्त सूत्रबद्ध किये गये हैं जो हमारे समाज और राज्य व्यवस्था को ‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾ बनाते हैं।
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    अनुच्छेद 17 के अनुसार ‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾ का उन्मूलन किया जा चुका है।
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    आज हमारे देश में हाशियायी समूह यह दलील दे रहे हैं कि एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते उन्हें भी ‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾ का अधिकार मिलना चाहिए।
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    हमारे देश में ‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾ तबकों के लिए खास कानून और नीतियाँ बनाई गई हैं।
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  • 7
    परंपरागत वनवासी (वन अधिकार मान्यता) अधिनियम 2006 में कहा गया है कि ‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾ एवं ‾‾‾‾‾‾‾‾‾‾ संरक्षण वनवासियों के अधिकारों में आता है।
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