अगर भारत में न्यायपालिका स्वतंत्र न हो तो आम नागरिकों को न्याय प्राप्त करना मुश्किल ही नहीं, असंभव हो जाएगा। एक तो पैसे वालों का बोलबाला हो जाएगा। दूसरे दबंगों की चलती हो जाएगी। फिर तो, समाज में जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत लागू हो जाएगी। गरीब आदमी
यदि अस्वतंत्र न्यायपालिका में जायेगा तो वहाँ न्यायाधीश बिका हुआ तैयार – मिलेगा जो पैसों वाले के पक्ष में ही फैसला करेगा। फिर तो समाज में अँधेरगर्दी – मच जाएगी, पूँजीतंत्र और गुंडावाद हावी हो जाएगा।