औपनिवेशिक काल में प्रकाशन के विकास के साथ-साथ इसे नियंत्रित करने का भी प्रयास किया गया। ऐसा करने के पीछे दो कारण थे पहला, सरकार वैसी कोई पत्र-पत्रिका अथवा समाचार पत्र मुक्त रूप से प्रकाशित नहीं होने देना चाहती थी जिससे सरकारी व्यवस्था और नीतियों की आलोचना हो। तथा दूसरा, जब अंग्रेजी राज की स्थापना हुई उसी समय से भारतीय राष्ट्रवाद का विकास भी होने लगा। राष्ट्रवादी संदेश के प्रसार को रोकने के लिए प्रकाशन पर नियंत्रण लगाना सरकार के लिए आवश्यक था। अतः समय-समय पर सरकार विरोधी प्रकाशनों पर नियंत्रण लगाने का प्रयास किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी सुरक्षात्मक और राजनीतिक कारणों से प्रेस पर नियंत्रण लगाने के प्रयास किए गए। 1857 के विद्रोह के परिणामस्वरूप सरकार का रूख प्रेस के प्रति पूर्णतः बदल गया। राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रसार को रोकने के लिए प्रेस को कुंठित करने के प्रयास किए गए। प्रेस को नियंत्रित करने के लिए पारित विभिन्न अधिनियम उल्लेखनीय हैं
- 1799 का अधिनियम-फ्रांसीसी क्रांति के प्रभाव को भारत में फैलने से रोकने के लिए गवर्नर जनरल वेलेस्ली ने 1799 में एक अधिनियम पारित किया। इसके अनुसार समाचार पत्रों पर सेंसरशिप लगा दिया गया।
- 1823 का लाइसेंस अधिनियम-इस अधिनियम द्वारा प्रेस स्थापित करने से पहले सरकारी अनुमति लेना आवश्यक बना दिया गया।
- 1867 का पंजीकरण अधिनियम-इस अधिनियम द्वारा यह, आवश्यक बना दिया गया कि प्रत्येक पुस्तक, समाचार-पत्र एवं पत्र-पत्रिका पर मुद्रक, प्रकाशक तथा मुद्रण के स्थान का नाम अनिवार्य रूप से दिया जाए। साथ ही प्रकाशित पुस्तक की एक प्रति सरकार के पास जमा करना आवश्यक बना दिया गया।
- बर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट (1878)- लार्ड लिटन के शासनकाल में पारित प्रेस को प्रतिबंधित करनेवाला सबसे विवादास्पद अधिनियम यही था। इसका उद्देश्य देशी भाषा के समाचार पत्रों पर कठोर अंकुश लगाना था। अधिनियम के अनुसार भारतीय समाचार पत्र ऐसा कोई समाचार प्रकाशित नहीं कर सकती थी जो अंगरेजी सरकार के प्रति दुर्भावना प्रकट करता हो। भारतीय राष्ट्रवादियों ने इस अधिनियम का कड़ा विरोध किया।
सरकार ने प्रेस पर अंकुश लगाने के लिए समय-समय पर अन्य कानून भी बनाए। द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ होने पर भारत रक्षा अधिनियम बनाया गया। इसके द्वारा युद्ध संबंधी समाचारों के प्रकाशन को नियंत्रित किया गया। ‘भारत छोड़ आंदोलन के दौरान सरकार ने समाचार पत्रों पर कठोर नियंत्रण स्थापित किया। 1942 में लगभग 90 समाचार पत्रों का प्रकाशन रोक दिया गया। इस प्रकार औपनिवेशिक सरकार ने भारतीय प्रेस को प्रतिबंधित करने के लिए विभिन्न अधिनियों के द्वारा काफी प्रयास किए।