आधुनिक अर्थव्यवस्था में साख का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। साख को वर्तमान । आर्थिक प्रणाली की आधारशिला माना गया है। – साख अथवा बैंक-मुद्रा का निर्माण देश के व्यावसायिक बैंकों द्वारा किया जाता है। बैंक प्रायः
उत्पादकों एवं व्यापारियों के लिए अल्पकालीन ऋण या साख की व्यवस्था करते हैं। परंतु, बैंक इन्हें किस आधार पर साख प्रदान करते हैं ? साख का निर्माण बैंकों में जनता द्वारा जमा किए गए धन के आधार पर होता है। बैंकों के साथ निर्माण की पद्धति को एक उदाहरण द्वारा अधिक पष्ट किया जा सकता है। मान लीजिए कि कोई व्यक्ति बैंक के अपने खाता में 10,000 रुपये की राशि जमा करता है। चूंकि ग्राहक बैंक में जमा अपने धन को किसी समय भी निकाल सकते हैं, इसलिए बैंक को इतनी रकम हर समय अपने पास रखनी चाहिए। परंतु, बैंक व्यवहार में ऐसा नहीं करते। अपने अनुभव से वे जानते हैं कि जमाकर्ता अपनी संपूर्ण जमाराशि की माँग एक ही समय नहीं करते। मान लें कि एक निश्चित समय में कुल जमाराशि के 10 प्रतिशत भाग की ही जमाकर्ताओं द्वारा मांग की जाती है।
ऐसी स्थिति में 10,000 रुपये के जमा में से 1,000 रुपये नकद रखकर बैंक शेष 9,000 रुपये दूसरों को ऋण या साख के रूप में दे सकता है। बहुत संभव है कि ऋण-प्राप्तकर्ता इस 9,000 रुपये को पुनः उसी बैंक अथवा किसी अन्य बैंक में जमा कर दे। दूसरे शब्दों में, यह राशि बैंकिंग-प्रणाली को फिर जमा के रूप में प्राप्त हो जाती है। अतएव, बैंक इस जमा का भी 10 प्रतिशत, अर्थात 900 रुपये अपने नकद कोष में रखकर शेष 8,100 रुपये पुनः उधार दे सकता है। इस प्रकार, बैंक का यह क्रम चलता रहेगा और वह अपनी मूल जमाराशि से कई गुना अधिक साख का निर्माण कर सकता है।
परंतु, बैंकों की साख-निर्माण की क्षमता असीमित नहीं होती। नकद मुद्रा साख-सृजन का मुख्य आधार है। अतएव, केंद्रीय बैंक द्वारा जारी की गई मुद्रा की मात्रा जितनी अधिक होगी, व्यावसायिक बैंक उतनी ही अधिक साख का निर्माण कर सकते हैं। यही कारण है कि जब केंद्रीय – बैंक मुद्रा की पूर्ति को घटा देता है तब बैंकों की साख-सृजन की शक्ति भी स्वतः घट जाती है।
इसके अतिरिक्त बैंकों के साख-निर्माण की क्षमता केंद्रीय बैंक में रखें जानेवाले नकद कोष के : अनुपात, जनता की बैंकिंग संबंधी आदतों तथा साख अथवा ऋण की मोग आदि बातों पर भी निर्भर करती है।