वस्तु-विनिमय प्रणाली में मुख्य कठिनाई निम्नलिखित थी।
- दोहरे संयोग का अभाव वस्तु-विनिमय प्रणाली में आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव था। इसके अंतर्गत ऐसे दो व्यक्तियों में संपर्क होना आवश्यक है जिनके – पास एक-दूसरे की आवश्यकता की वस्तुएँ हों। वास्तविक जीवन में इस प्रकार का संयोग बहुत कठिनाई से होता है।
- मापन की कठिनाई एक समान मापदंड के अभाव के कारण दो वस्तुओं के बीच विनिमय का अनुपात निश्चित करना कठिन था। जैसे-एक किलोग्राम गेहूँ के बंदले – कितने गाय या कपड़े दिया जाए यह तय करना मुश्किल था।
- अविभाज्य वस्तुओं के विनिमय में उत्पन्न समस्याएँ, पशुओं को विनिमय करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। क्योंकि इनको विभाज्य करने पर इनकी उपयोगिता नष्ट हो जाती है। जैसे-एक मीटर कपड़े के बदले घोड़े या गाय का विनिमय। इसमें घोड़े के काटने के बाद उसकी उपयोगिता ही समाप्त हो जाएगी।
- मूल्य संचयन का अभाव- उत्पादित वस्तुओं का दीर्घकाल तक संचित करके नहीं रख सकते। जैसे-फल, फूल, सब्जी, मछली इत्यादि।
- भविष्य में भुगतान की कठिनाई- कुछ ऐसी वस्तएँ जो उधार के तौर पर दूसरे व्यक्ति से ली गई हैं यदि उसे कुछ वर्षों बाद वापस कर दी जाती है तो उसकी उपयोगिता या तो घट जाती है या समाप्त हो जाती है।
मूल्य हस्तांतरण की समस्या-यदि कोई व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है तो ऐसी स्थिति में उसे सारी सम्पत्ति छोड़ कर जाना पड़ सकता है। वस्तु-विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों ने ही मुद्रा को जन्म दिया। मुद्रा के विनिमय के माध्यम होने से वस्तु-विनिमय प्रणाली के आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की कठिनाई दूर हो गई। मुद्रा के द्वारा वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य मापने में आसानी हो गयी। मुद्रा के द्वारा अविभाज्य वस्तुओं का आसानी से मूल्य मापन से उनकी समस्या का समाधान भी हो गया। मुद्रा के रूप में संपत्ति का संचय आसानी से होने लगा। इस प्रकार मुद्रा के प्रचलन में आने से वस्तु-विनिमय प्रणाली की सभी कठिनाइयों का समाधान आसानी से संभव हुआ।