मैं अपने पिताजी के साथ एक बार अपने घर के पास वाले बाजार में गई थी। वहाँ सभी वस्तुएँ मिल रही थीं। कछ दुकानें छोटी थी और कछ दुकानें बड़ी थी। छोटी दुकानों में सामानों की मात्रा बहुत ज्यादा नहीं थी और वह दुकान भी बहुत ही साधारण-सी थी। वहाँ पर से आस-पास के लोग सामानों की खरीददारी कर रहे थे।
वहीं कुछ दूकानें बहुत बड़ी और आकर्षित ढंग से सजी हुई थी। वहीं कुछ दुकानों में ब्रांडेड कपडे, कुछ में ब्रांडेड जूते आदि मिल रहे थे। वहीं कुछ ठेले आदि पर भो जूते और कपड़े बेच रहे थे। वहीं पास में सब्जी और फल भी मिल रहे थे। ठेले पर चाट-पकौड़े, भुंजा ‘आदि मिल रहे थे। सभी लोग खरीददारी करने में व्यस्त थे।