भारत में एक सामाजिक शक्ति के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय व्यापारियों के अनुचित व्यवसाय व्यवहार के कारण हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात खाद्यान्न की अत्यधिक कमी होने के कारण जमाखोरी और कालाबाजारी बहुत बढ़ गयी थी। अत्यधिक लाभ कमाने के लालच में उत्पादक और विक्रेता खाद्य पदार्थों में मिलावट करने लगे थे। इसके विरोध में देश में उपभोक्ता आंदोलन संगठित रूप में प्रारंभ हुआ। 1970 के इराक में कई उपभोक्ता संगठन जन-प्रदर्शन तथा पत्र-पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित करने लगे थे। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी विक्रेता उपभोक्ताओं को निर्धारित मात्रा में तथा उचित समय पर वस्तुओं की आपूर्ति नहीं करते थे तथा कई प्रकार से मनमानी करते थे। विगत वर्षों के अंतर्गत देश में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है जिन्होंने उपभोक्ताओं को जागरूक बनाने का प्रयास किया हैं उपभोक्ता आंदोलनों ने व्यापारिक संस्थानों तथा सरकार दोनों को अनुचित व्यवसाय व्यवहार में सुधार लाने के लिए बाध्य किया है। सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को पारित किया।