सन् 1854 में बम्बई पहला सती वस्त्र का कारखना कावस जी नानाजी दाभार नामक एक पारसी ने स्थापित किया। सन् 1880 ई. तक पूरे भारत में 56 सूती कपड़ा मिलें स्थापित हो चुकी थीं । इन कारखनों के लिए के लिए मशीनें विदेशों से मंगाई जाती थीं। भारतीय कपड़ा उद्योग की प्रगति – ने विदेशों को चिंता में डाल दिया था। भारतीय उद्योगपतियों के सामने समस्या यह थी कि यदि किसी तरह अंग्रेजी सरकार भारतीय उद्योगों को बढ़ावा देने का कार्य करती, तो उत्पादन क्षमता में वृद्धि की जा सकती थी।
अतः उन्होंने मांग की, कि इंग्लैंड से आ रहे कपड़ों पर सरकार विशेष कर लगाए ताकि वे भारत में यहाँ के बने हुए कपड़ों से महंगा बिके लेकिन अंग्रेजों ने ऐसा नहीं किया बल्कि ऐसी नीति अपनायी कि भारत का औद्योगिक विकास धीमा रहे। साथ ही अंग्रेजों के निर्देश पर बैंक ऊँचे ब्याज दर पर भारतीय उद्योगपतियों . को कर्ज देते थे जिससे उन्हें काफी परेशानी होती थी।