(b) $q = q _0\left(1- e ^{- t / CR }\right)$
$CR$ समय नियतांक कहलाता है।
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एक a.c के क्षणिक वि.वा.ब. (e.m.f.)e और धारा $i$ के क्रमानुसार मान निम्न प्रकार व्यक्त किए जा सकते हैं:
$e = E _{ o } \sin \omega t$
$i = I _0 \sin (\omega t -\phi)$
a.c. की एक साइकल(आवर्त) में परिपथ में मध्यमान शक्ति होगी :
एक ट्रांसफार्मर के प्राथमिक और द्वितीयक कुण्डलियों में फेरों की संख्याएँ क्रमानुसार 50 और 1500 हैं। प्राथमिक कुण्डली से सम्बन्धित चुम्बकीय फ्लक्स $\phi=\phi_0+4 t$, द्वारा व्यक्त होती है जबकि $\phi$ वेबर में है, समय $t$ सेकेण्ड में है और $\phi_0$ एक नियतांक है। द्वितीय कुण्डली से प्राप्त वोल्टता होगी-
एक धारा प्रवाहित कुण्डली जिसकी त्रिज्या 30 सेमी तथा प्रतिरोध $\pi^2 \Omega$ है को एक चुम्बकीय क्षेत्र $B =10^{-2} T$ वाले क्षेत्र में चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् घुमाया जातो है। यदि घुमाने की दर $200 rpm$ हो तो उत्पन्न प्रत्यावर्ती धारा का अधिकतम मान होगा:
एक श्रेणी $R-C$ परिपथ किसी प्रत्यावर्ती वोल्टता के स्त्रोत से जुड़ा है। दो स्तिथियों $(a)$ तथा $(b)$ पर विचार कीजिए $(a)$ जब संधारित्र वायु भरा है। $(b)$ जब, संधारित्र माइका भरा है। इस परिपथ में प्रतिरोधक से प्रवाहित विद्युत धारा $i$ है तथा संधारित्र के सिरों के बीच विभवान्तर $V$ है तो
एक विद्युत परिपथ में $R, L, C$ तथा एक ए. सी. वोल्टता स्त्रोत सभी श्रेणी क्रम में जुड़े हैं। परिपथ में से $L$ को हटा देने से वोल्टता तथा विद्युत धारा के बीच कलान्तर $\pi / 3$ हो जाता है, यदि इसके बजाय $C$ को परिपथ से हटा दिया जाये तो, यह कलान्तर फिर भी $\pi / 3$ रहता है। परिपथ का शक्ति गुणांक है :
किसी स्त्रोत जिसका emf, $V=10 \sin 340 t$ है, से श्रेणी में $20 mH$ का प्रेरक, $50 \mu F$ का संधारित्र तथा $40 \Omega$ का प्रतिरोधक संयोजित है। इस प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में शक्ति क्षय है:
एक श्रेणीबद्ध $\text{LCR}$ परिपथ में $C =10 \mu F$ एवं $\omega=1000$ सेकेण्ड ${ }^{-1}$ हैं। परिपथ में महत्तम धारा के लिये प्रेरकत्व $L$ का मान कितना होना चाहिये?