सहकारिता के क्षेत्र में सहकारी बैकों का महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे देश में इन बैंकों के तीन मुख्य रूप है केंद्रीय सहकारी बैंक, राज्य सहकारी बैंक तथा भूमि विकास बैंक।
(i) केंद्रीय सहकारी बैंक- केंद्रीय सहकारी बैकों का मुख्य कार्य प्रारंभिक समितियों का संगठन करना तथा उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करना है। अपनी अंशपूँजी एवं जमा-राशि, जनता द्वारा जमा की गई राशि तथा राज्य सहकारी बैंक से प्राप्त ऋण एवं अग्रिम केंद्रीय सहकारी बैंकों के पूँजी के मुख्य स्रोत है। केंद्रीय सहकारी बैंक उन सभी कार्यों का संपादन करते हैं जो एक व्यावसायिक बैंक द्वारा किए जाते हैं, जैसे जनता के धन को जमा के रूप में स्वीकार करना, ऋण देना, चेक, बिल, हुंडी आदि का भुगतान करना आदि।
(ii) राज्य सहकारी बैंक- प्रत्येक राज्य में इस प्रकार का केवल एक ही बैंक होता है जो उसके मुख्यालय में स्थित होता है। राज्य सहकारी बैंक राज्य के सभी केंद्रीय सहकारी बैंकों के प्रधान होते हैं। राज्य सहकारी बैंक के वित्तीय साधन उनकी अपनी अंशपूंजी, केंद्रीय सहकारी बैंक एवं जनता की जमाराशि तथा राज्य सरकार से प्राप्त ऋण एवं अग्रिम है। राज्य, सहकारी बैकों का मुख्य कार्य केंद्रीय सहकारी बैंकों का संगठन तथा उन्हें ऋण प्रदान करना है। भूमि विकास बैंक- प्रारंभिक कृषि-साख समितियाँ कृषि की अल्पकालीन एवं मध्यकालीन साख की आवश्यकताओं को पूरा करती है। भूमि विकास बैंक किसानों के लिए दीर्घकालीन ऋण की व्यवस्था करते हैं। दीर्घकालीन ऋणि सिंचाई, ट्रेक्टर आदि जैसे महंगे कृषि-यंत्र, पुराने ऋणों के भुगतान तथा भूमि में स्थायी सुधार के लिए होते हैं। भूमि विकास बैंक को पहले ‘भूमि.बंधक बैंक भी कहा जाता था। भूमि विकास बैंक अपनी अंशपूँजी, जमाराशि तथा ऋणपत्रों की बिक्री आदि से वित्तीय साधन एकत्र करते हैं।
भूमि विकास बैंक भी दो प्रकार की होती हैं केंद्रीय भूमि विकास बैंक तथा प्रारंभिक भूमि, विकास बैंक। देश के कई राज्यों में प्रारंभिक भूमि विकास बैंक नहीं है। ऐसे राज्यों में किसानों को सीधा केंद्रीय भूमि विकास बैंक से ही ऋणों की प्राप्ति होती है।