जर्मन का एकीकरण निम्न प्रकार हुआ-
(i) 1848 की फ्रैंकफर्ट संसद- प्रशा ने नरेश फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ के नेतृत्व में फ्रैंकफर्ट संसद ने जर्मनी के एकीकरण के लिए भरसक प्रयास किए परंतु वे असफल रहे। यद्यपि जर्मन लोगों में 1848 के पहले ही राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो चुकी थी। राष्ट्रीयता की भावना मध्यवर्गीय जर्मन लोगों में बहुत अधिक है।
(ii) प्रशा के नेतृत्व में एकीकरण– राष्ट्र निर्माण की इस उदारवादी विचारधारा को राजशाही और फौजी ताकतों के विरुद्ध कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा जिन्हें प्रशा के बड़े भूस्वामियों (Junkers) ने भी समर्थन दिया था उसके बाद प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया। प्रशा का प्रधानमंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क इस प्रक्रिया का जनक था जिसने प्रशा की सेना और नौकरशाही की मदद ली।
(iii) बिस्मार्क का योगदान बिस्मार्क प्रशा के उन महान सपूतों में से एक था जिसने सेना और नौकरशाही की मदद से जर्मनी के एकीकरण का उत्कृष्ट प्रयास किया। उसका मानना था कि जर्मनी के एकीकरण में सफलता राजकुमारों द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है न कि लोगों द्वारा। वह प्रशा के जर्मनी में विलय द्वारा नहीं बल्कि प्रशा का जर्मनी तक विस्तार के द्वारा इस उद्देश्य
को पूरा करना चाहता था।
(iv) तीन युद्ध – बिस्मार्क के जर्मन-एकीकरण का उद्देश्य सात वर्ष में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस से तीन युद्धों द्वारा पूर्ण हुआ जो 1864 से 1870 के बीच लड़े गए।
(v) जर्मनी के एकीकरण की अंतिम प्रक्रिया- उपर्युक्त युद्धों का परिणाम प्रशा की जीत के रूप में आया जिससे एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई। 18 जनवरी 1871 में, वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा काइजर विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट बनाया गया और नए जर्मन साम्राज्य की घोषणा की गई।