यूरोपीय राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति का क्या योगदान था?
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यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति की अहम भूमिका रही। कला, साहित्य और संगीत ने राष्ट्रवादी भावनाओं को गढ़ने और व्यक्त करने में सहयोग दिया। इसके कई उदाहरण हमें फ्रांस, इटली, यूनान और जर्मनी में देखने को मिलते हैं। राष्ट्रप्रेम की भावना का प्रसा कलाकारों, विचारकों, साहित्यकारों, कवियों, संगीतकारों आदि ने संस्कृति को आधार बनाउ किया। इसके निम्नलिखित उदाहरण यूरोप में देखने को मिलते हैं।
(i) फ्रेडरिक सारयू का कल्पनादर्श–फ्रांसीसी कलाकार फ्रेंडिक सारयू ने एक कल्पनादश की रचना अपने चित्रों के द्वारा की जिसमें आदर्श समाज की कल्पना की गई। इन चित्रों में विभिन्न राष्ट्रों की पहचान कपड़ों और प्रतीक चिह्नों द्वारा एक राष्ट्र राज्य के रूप में की गई। इस प्रकार 19वीं शताब्दी में यूरोप में राष्ट्रीयता के विकास में सारयू की कल्पनादर्श ने प्रेरणा का काम किया। कलाकारों ने मानवीय रूप में राष्ट्र को प्रस्तुत किया। राष्ट्र की कल्पना नारी रूप में की। फ्रांस में मारीआन को एवं जर्मनी में जर्मेनिया को राष्ट्रवाद के प्रतीक रूप में नारी का चित्रांकन हुआ।
(ii) रूमानीवाद-रूमानीवाद एक ऐसा सांस्कृतिक आंदोलन था जो एक विशिष्ट प्रकार के राष्ट्रवाद का प्रचार किया। आमतौर पर रूमानी कलाकारों और कवियों ने तर्क-वितर्क और विज्ञान के महिमामंडन की आलोचना की और उसकी जगह भावनाओं, अंतर्दृष्टि और रहस्यवादी भावनाओं पर अधिक बल दिया। उनका प्रयास था कि सामूहिक विरासत और संस्कृति को राष्ट्र का आधार बनाया जाए।
(iii) लोक परंपराएँ-जर्मनी के चिंतक योहान गॉटफ्रीड का मानना था कि सच्ची जर्मन संस्कृति आम लोगों में निहित थी। राष्ट्र की अभिव्यक्ति लोकगीतों, लोकनृत्यों और जनकाव्य से प्रकट होती थी इसलिए राष्ट्र निर्माण के लिए इनका संकलन आवश्यक था। निरक्षर लोगों में राष्ट्रीय भावना संगीत, लोककथा के द्वारा जीवित रखी गई। कैरोल कुर्पिस्की ने राष्ट्रीय संघर्ष का अपने ऑपेरा और संगीत से गुणगान किया।
(iv) भाषा भाषा ने भी राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। रूसी कब्जे के बाद पोलिश भाषा को स्कूलों में बलपूर्वक हटाकर रूसी भाषा को जबरन लादा गया। 1831 के पोलिश विद्रोह को यद्यपि रूस ने कुचल दिया। परंतु राष्ट्रवाद के विरोध के लिए भाषा को एक हथियार बनाया। धार्मिक शिक्षा और चर्च में पोलिश भाशा का व्यवहार किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि पादरियों और विशपों को दंडित कर साइबेरिया भेज दिया गया। पोलिश भाषा रूसी प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष के प्रतीक के रूप में देखी जाने लगी।

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