मजिस्ट्रेट के सामने अपना जुर्म कबूल करने पर ही व्यक्ति को यानी दोषी को सजा हो सकती है। क्योंकि मजिस्ट्रेट के यहाँ मार-पीट नहीं होती और वह प्रथम न्यायाधीश होता है। जबकि पलिस तो मारपीट कर जबर्दस्ती भी किसी व्यक्ति से अपना जुर्म कबूल करवा सकती है । इसीलिए थाने में अपना जुर्म कबूल करने पर भी किसी अपराधी को वहीं सजा नहीं सुनाई जा सकती चूँकि सजा सुनाने का काम अदालत का है।