दबंगों और जमींदारों द्वारा मछुआरों का शोषण किया जा रहा था। उनसे मछली मारने के बदले पैसे लिए जाते थे। फिर सरकार द्वारा फरक्का नामक स्थान पर गंगा नदी पर बाँध दिया गया। समुद्र से गंगा नदी में मछलियों एवं जीरे का बहाव आना बंद हो गया। फलस्वरूप गंगा नदी में मछलियों की कमी हो गयी । गंगा में दोनों तरफ फैक्ट्रियाँ लग जाने से उनसे निकलने वाले कचरे से गंगा और भी प्रदूषित होने लगी। प्रदूषण की वजह से मछलियाँ मरने लगी और उनकी प्रजनन क्षमता भी कम होने लगी।
इन वजहों से मछुआरों के सामने भूखे मरने की नौबत आ गयी और इन्हीं कारणों से मछुआरे परेशान थे। इसके लिए इन्होंने 1982 में कहलगाँव के कागजी टोला से संघर्ष का ऐलान किया । लम्बी नौका यात्रा, नशाबन्दी शिविर, धरना प्रदर्शन, महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के प्रयास किए । जाति प्रथा तोड़ने, शराबखोरी बंद करने, जलकर की समाप्ति, महिलाओं को बराबर का हक आदि उनके प्रमुख संकल्प थे।