मध्य काल में सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में कई परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं। मध्ययुगीन आर्थिक जीवन मुख्य रूप से कृषि पर आधारित था। पर, कृषि के साथ-साथ इस युग में अन्य आर्थिक गतिविधियां बढ़ने लगीं । इससे वाणिज्य-व्यापार व शहरी जीवन की रफ्तार बढ़ने लगी । खेतों की कुड़ाई के लिए फावड़ा या कुदाल की जगह हल का उपयोग होने से कृषि कर्म को विकास मिला।
खेती में प्रौद्योगिकी के समावेश से कृषि से लाभ बढ़ गया। 13वीं शताब्दी में चरखे और धुनकी के प्रयोग से सूती कपड़े की गुणवत्ता व उत्पादन में वृद्धि हुई। इस युग में कागज का व्यापक उपयोग शुरू होने की क्रान्तिकारी सामाजिक घटना घटी जिससे ज्ञान का आविष्कार और प्रसार सम्भव हुआ। समुद्री व्यापार में बढ़ोतरी हुई। इससे नयी विचारधारा और प्रौद्योगिकी का विश्व के अन्य भागों में प्रसार सम्भव हुआ। विश्व के लोगों के एक-दूसरे के सम्पर्क में आने से हर जगह नये रीति-रिवाज, पहनावा और खान-पान में परिवर्तन हुए।
इन सामाजिक बदलावों ने राजनीतिक क्षेत्रों को भी गहरे प्रभावित किया । अन्य देशों में व्यापार करने जाने के बहाने प्रबल यूरोपीय शासक अन्य विश्व भू-भाग पर अपने उपनिवेश बसाने लगे । वे अन्य देशों की शासन व्यवस्था की अपने अधीन करने लगे। शोषित देशों के शासक आपसी झगड़े में व्यस्त होने से फूट के कारण अधीन हो गये अपने देशे को विदेशी हुकूमत से मुक्ति दिलाने के लिए एकजुट होने लगे । फ्रांस और अमेरिका में हुए जन-विद्रोह के बाद वहां बनी गणतांत्रिक सरकारों के प्रभाव से अन्य देश भी ‘राष्ट्र’ के रूप में संगठित होने लगे। इन अधीन देशों में भी जन-विद्रोह होने लगे और वहां के शासक-परिवार के लोग व सामंत व आम जनता विदेशी शासन के खिलाफ विद्रोह कर अपने देश को स्वतंत्र करने में लग गये।