मुसलमान और हाशियाकरण
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या में मुसलमानों की संख्या 14.2 प्रतिशत है। उन्हें हाशियायी समुदाय माना जाता है क्योंकि दूसरे समुदायों के मुकाबले | उन्हें सामाजिक-आर्थिक विकास में अन्य समुदाय जितने लाभ नहीं मिले हैं।
मुसलमानों के हाशियाकरण की स्थिति को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
1. मूलभूत सुविधाओं की दृष्टि से मुसलमानों की तुलनात्मक स्थिति- वर्ष 2008-09 के आँकड़ों के अनुसार मुस्लिम परिवार अन्य समुदायों की तुलना में अधिक कच्चे घरों में रहते थे। उनके 67.5 प्रतिशत घरों में ही बिजली थी जबकि हिन्दू घरों में 75.2% घरों में बिजली थी। इसी प्रकार 35.8% मुसलमान ही जहाँ पाइप के पानी का प्रयोग करते हैं, वहाँ 43.7 प्रतिशत हिन्दू लोग पाइप के पानी का प्रयोग करते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि मकान, पानी और बिजली जैसी सुविधाओं में मुसलमान हिन्दुओं से काफी पिछड़े हुए हैं।
2. साक्षरता की स्थिति- 2011 की जनगणना के अनुसार मुस्लिम समुदाय की साक्षरता की दर अन्य समुदायों की तुलना में कम है। भारत में हिन्दू, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध और जैन समुदायों की साक्षरता दर जहाँ क्रमशः 63%, 74%, 67%, 71% तथा 86% है, वहीं मुसलमानों की साक्षरता दर 57 प्रतिशत है जो काफी कम है।
3. सरकारी नौकरियों में मुसलमानों का प्रतिशत- 2006 की एक रिपोर्ट के आँकड़ों के अनुसार भारत में मुसलमानों की जनसंख्या जहाँ 13.5 प्रतिशत है, वहाँ भारत में मुसलमान आई.ए.एस. 3 प्रतिशत, आईपीएस 4 प्रतिशत, आईएफएस 1.8 प्रतिशत, पी.एस.यू. 3.3 प्रतिशत, राज्यस्तरीय पीएसयू 10.8 प्रतिशत तथा बैंक सेवाओं में 2.2 प्रतिशत है।
इससे स्पष्ट होता है कि भारत में मुसलमान विकास के विभिन्न संकेतकों पर पिछड़े हुए हैं। विभिन्न सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक संकेतकों के हिसाब से मुसलमानों की स्थिति अनुसूचित जाति और जनजाति जैसे अन्य हाशियायी समुदायों से मिलती-जुलती है।
4. हाशियाकरण के अन्य पहलू-मुसलमानों के आर्थिक- सामाजिक हाशियाकरण का अन्य पहलू मुसलमानों के रीति- रिवाज हैं। दूसरे अल्पसंख्यकों की तरह मुसलमानों के भी कई रीति-रिवाज और व्यवहार मुख्यधारा के मुकाबले काफी अलग हैं। कुछ मुसलमानों में बुर्का, लम्बी दाढ़ी और फैज टोपी का चलन दिखाई देता है। बहुत सारे लोग सभी मुसलमानों को इन्हीं निशानियों से पहचानने की कोशिश करते हैं। इसी कारण अक्सर उन्हें अलग नजर से देखा जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि वे 'हम बाकी लोगों' जैसे नहीं हैं। अक्सर यही सोच उनके साथ गलत व्यवहार करने और भेदभाव का बहाना बन जाती है।