परागण | निषेचन |
वह क्रिया जिसमें परागकण स्त्रीकेसर के वर्तिकाग्र तक पहुँचते हैं, परागण कहलाती है। परागण निषेचन से पहले होता है। | वह क्रिया जिसमें नर युग्मक और मादा युग्मक मिलकर युग्मनज बनाते हैं, निषेचन कहलाती है। निषेचन परागण के बाद होता है। |
यह जनन क्रिया का प्रथम चरण है। | यह जनन क्रिया का दूसरा चरण है। |
परागण क्रिया दो प्रकार की होती है- स्व-परागण और पर-परागण। | निषेचन क्रिया भी दो प्रकार की होती है- बाह्य निषेचन एवं आंतरिक निषेचन। |
परागकणों के स्थानांतरण के लिए वाहकों की आवश्यकता होती है। | इस क्रिया में वाहकों की कोई आवश्यकता नहीं होती। |
अनेक परागकणों का नुकसान होता है। | इसमें परागकणों का नुकसान नहीं होता। |
इस क्रिया में विशेष लक्षणों की आवश्यकता होती है। | इस क्रिया में विशेष लक्षणों की आवश्यकता नहीं होती। |
इस क्रिया के पूरा हो जाने पर निषेचन क्रिया पूरी होने की आशा होती है। | इस क्रिया के पश्चात् बीजों और फल बनने की संभावना हो जाती है। |