राजस्थान राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग दसवाँ भाग वन क्षेत्र है, जिसका वर्गीकरण निम्नलिखित है
वैधानिक (कानूनी) दृष्टि से वनों का वर्गीकरण:-
1. आरक्षित वन-ये कुल वन क्षेत्र के एक तिहाई से अधिक हैं। इस वर्ग के वन सरकारी नियंत्रण में आते हैं । पर्यावरण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इस क्षेत्र में पशु चराने व लकड़ी काटने पर प्रतिबंध होता है।
2.सुरक्षित वन-ये कुल वन क्षेत्र के आधे से अधिक क्षेत्र पर फैले हैं। इन वनों पर भी सरकारी नियंत्रण होता है। कुछ | नियमों के साथ इस क्षेत्र में पशुओं को चराने व लकड़ी काटने की अनुमति दी जाती है।
3. अवर्गीकृत वन-सुरक्षित किये गये वनों के अतिरिक्त शेष वन इसके अंतर्गत आते हैं। इस श्रेणी के वनों में पशु चराने एवं लकड़ी काटने पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है।
भौगोलिक दृष्टि से वनों का वर्गीकरण:-
1. उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन-ये वन राजस्थान के शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क भागों में पाये जाते हैं। इन वनों में झाड़ियाँ एवं कंटीले वृक्ष पाये जाते हैं। रोहिड़ा, खेजड़ी, धौकड़ा, बेर. बबूल, कैर, नीम इत्यादि मुख्य वृक्ष हैं। यहां की मर स्थलीय वनस्पति को मरुदभिद् भी कहा जाता है। |
2. उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ बन-इन वनों को | मानसनी वन भी कहते हैं। इन वनों में पाई जाने वाली | अधिकांश लकड़ियाँ मजबूत होती हैं। यहाँ के वृक्ष | ग्रीष्मकाल में अपनी पत्तियां गिरा देते हैं। इन वनों में सागवान, बरगद, आम, तेंदू, सालर, महुआ, गूलर, धौक, ढाक, साल, सीताफल, बाँस, आँवला, नीम, शीशम इत्यादि वृक्ष पाये जाते हैं।
3. अर्द्ध-उष्ण सदाबहार वन-सदव हर-भर हान के कारण इन वनों को सदाबहार वन कहते हैं। ये वन पहाड़ी के ऊँचाई वाले भागों में ही पाये जाते हैं। जैसे-आबू पर्वतीय क्षेत्र। इन वनों में आम, बाँस, सागवान आदि मुख्य वृक्ष पाये जाते हैं।