राजस्थान में मूर्तिकला गुप्तयुगीन मूर्तिकला-परम्परा का प्रभाव राजस्थान में भी रहा है। राजस्थान में वैष्णव, शैव, शाक्त आदि के साथ जैन धर्म को भी राजकीय संरक्षण प्राप्त था। अतः इनके मंदिर एवं मूर्तियाँ बहुत बनाए गए। यथा -
(अ) मूर्तियों का प्रकार ,
- शैव मूर्तियाँ-शैव धर्म की प्राचीन परम्परा में शिव के लिंग-विग्रह व मानवीय प्रतिमाएँ पर्याप्त मात्रा में बनाई गई। इन मूर्तियों में महेश मूर्ति, अर्द्धनारीश्वर, उमा-महेश्वर, हरिहर, अनुग्रह मूर्तियों को अधिक उत्कीर्ण किया है। प्रतिमाओं की सुन्दरता अनुपम है।
- वैष्णव मूर्तियाँ-वैष्णव मूर्तियों में दशावतार, लक्ष्मीनारायण, गजलक्ष्मी, गरुड़ासीन विष्णु आदि की मूर्तियों में वैकुण्ठ, अनन्त त्रैलोक्य मोहन को खूबसूरती से उत्कीर्ण किया गया है।
- शाक्त मूर्तियां-शाक्त देवालयों में महिषासुर मर्दिनी की मूर्तियों की प्रधानता है। ओसियाँ, वरमाण (सिरोही), झालरापाटन, चित्तौड़गढ़ आदि में सूर्य प्रतिमाएँ देखी जा सकती हैं।
- जैन मूर्तियाँ-सिरोही क्षेत्र में बसन्तगढ़ और आहड़ क्षेत्र से प्राप्त धातु की जैन प्रतिमाएँ, मीरपुर, आबू, देलवाड़ा जैन मंदिर, रणकपुर, चित्तौड़गढ़, ओसियां की जैन मूर्तियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं।
(ब) मूर्तिकला की विशेषताएँ:
मूर्तियों में परिधान, आभूषण, केश-विन्यास तथा विभिन मुद्राओं में उत्कीर्णता इस युग की मूर्तिकला की विशेषताएँ हैं।