आधुनिक समय में राष्ट्रीय आय की धारणा को प्रायः उत्पादन के साधनों की आय के रूप में व्यक्त किया जाता है तथा इसकी उत्पत्ति अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन प्रक्रिया में होती है।
राष्ट्रीय आय की अवधारणा का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त करने के लिए अर्थव्यवस्था में आय के चक्रीय प्रवाह को समझना अत्यंत आवश्यक है। आय एक प्रवाह है तथा इसका सृजन उत्पादक क्रियाओं द्वारा होता है। यद्यपि सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं का अंतिम उद्देश्य उपभोग द्वारा मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि है, लेकिन उत्पादन के बिना उपभोग संभव नहीं होगा। वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन, उत्पादन के चार साधनों-भूमि, श्रम, पूँजी एवं उद्यम के सहयोग से होता है। उत्पादन के ये साधन एक निश्चित अवधि में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं। यह उत्पादन प्रक्रिया का एक पक्ष है।
परंतु, इसका एक दूसरा महत्त्वपूर्ण पक्ष भी है जिसका संबंध उत्पादन के उन साधनों की आय या पारिश्रमिक से है जिन्होंने इन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया है। इस प्रकार, उत्पादन प्रक्रिया के द्वारा अर्थव्यवस्था में जहाँ एक ओर वस्तुओं और सेवाओं का निरंतर एक प्रवाह जारी रहता है वहाँ एक दूसरा प्रवाह उत्पादन के साधनों की आय के रूप में होता है। यदि हम किसी देश की अर्थव्यवस्था को उत्पादक उद्योगों एवं उपभोक्ता परिवारों के दो क्षेत्र में विभक्त कर दें तो हम देखेंगे कि इनके बीच उत्पादन, आय एवं व्यय का निरंतर एक प्रवाह चल रहा है। उत्पादक या उद्यमी वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। इसके लिए उन्हें उत्पादन के साधनों की सेवाओं की आवश्यकता होती है। इस प्रकार, उत्पादन के क्रम में साधनों की आय का सर्जन होता है। उत्पादक उत्पादन के साधनों को उत्पादन क्रिया में भाग लेने के लिए उन्हें जो भुगतान करता है वह उनकी आय कहलाती है।
परंतु, किसी भी उत्पादक को उत्पादन के साधनों के पारिश्रमिक का भुगतान करने के लिए आवश्यक साधन कहाँ से प्राप्त होते हैं ? वह अपनी उत्पादित वस्तुओं को उपभोक्ता परिवारों के हाथ बेचता है जिससे उसे आय प्राप्त होती है। इसी आय से वह इन साधनों का पारिश्रमिक चुकाता है। विभिन्न उपभोक्ता परिवार ही उत्पादन के साधनों के स्वामी होते हैं तथा उत्पादन के साधन के रूप में उनहें लगान, मजदूरी, ब्याज एवं लाभ प्राप्त होता है। यह उनकी आय होती है। इस – आय को वे पुनः वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करते हैं। इस प्रकार, हम देखते हैं कि अर्थव्यवस्था में उत्पादकों से साधन आय के रूप में आय का चक्रीय प्रवाह उपभोक्ता परिवारों के पास पहुँचता है और पुनः इन परिवारों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं पर किए जानेवाले व्यय के माध्यम से उत्पादकों के पास आ जाता है। आय का यह प्रवाह निरंतर जारी रहता है तथा इसे आय का चक्रीय प्रवाह (circular flow of income) कहते हैं।