कृषि-कृषि एक प्राथमिक क्रिया है, जिसमें फसलों, फलों, सब्जियों तथा फूलों को उगाया जाता है तथा पशुपालन किया जाता है।
कृषि के प्रकार
भौगोलिक दशाओं, उत्पाद की माँग, श्रम और प्रौद्योगिकी के स्तर के आधार पर कृषि को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1. निर्वाह कृषि- निर्वाह कृषि का तात्पर्य एक कृषक द्वारा अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए खेती करने से है। इसमें पारम्परिक तरीके एवं निम्न प्रौद्योगिकी की सहायता से खेती की जाती है, जिससे उपज भी कम होती है। निर्वाह कृषि को पुनः निम्न दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) गहन निर्वाह कृषि- इस प्रकार की कृषि में एक छोटे भूखण्ड पर साधारण औजार तथा अधिक श्रम के साथ कृषक खेती करता है तथा एक वर्ष में एक से अधिक फसलें उगाता है। गहन निर्वाह कृषि दक्षिणी, दक्षिण-पूर्वी और पूर्वी एशिया के सघन जनसंख्या वाले मानसूनी प्रदेशों में प्रचलित है।
(ii) आदिम निर्वाह कृषि- आदिम निर्वाह कृषि में स्थानान्तरी कृषि और चलवासी पशुचारण शामिल है।
(क) स्थानान्तरी कृषि- स्थानांतरी कृषि में लोग वृक्षों को काटकर जलाकर भूखण्ड साफ करते हैं तथा राख को मृदा में मिलाकर उस पर खेती करते हैं तथा मृदा का उपजाऊपन खत्म होने पर कृषक उस भूमि को छोड़कर अन्य भूखण्ड पर खेती करने लगते हैं।
(ख) चलवासी पशुचारण- चलवासी पशुचारण में पशुचारक अपने पशुओं के साथ चारे और पानी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर निश्चित मार्गों में घूमते हैं।
2. वाणिज्यिक कृषि- वाणिज्यिक कृषि में फसल उत्पादन और पशुपालन बाजार में विक्रय हेतु किया जाता है। इसमें अधिक पूँजी, अधिक श्रम तथा आधुनिक औजारों की आवश्यकता पड़ती है। वाणिज्यिक कृषि को पुनः निम्न भागों में बाँटा जा सकता है-
(i) वाणिज्यिक अनाज कृषि- वाणिज्यिक अनाज कृषि में खाद्यान्न फसलों का उत्पादन और पशुपालन बाजार में विक्रय हेतु किया जाता है।
(ii) मिश्रित कृषि- मिश्रित कृषि में भूमि का उपयोग भोजन व चारे की फसलें उगाने और पशुधन पालन के लिए किया जाता है।
(iii) रोपण कृषि- रोपण कृषि वाणिज्यिक कृषि का एक प्रकार है जहाँ चाय, कॉफी, रबड़, केला अथवा कपास की एकल फसल उगाई जाती है।