(अ) उपयुक्त आरेख की सहायता से किसी उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर की कार्यविधि की व्याख्या कीजिए। बत
(ब) किसी वास्तविक ट्रान्सफार्मर में ऊर्जा क्षय के दो कारण लिखिए।
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(अ) ट्रांसफार्मर (Transformer) - ट्रांसफार्मर एक ऐसी विघुत युक्ति है जिसकी सहायता से उच्च धारा की निम्न प्रत्यावर्ती वोल्टता को निम्न धारा की उच्च प्रत्यावर्ती वोल्टता में तथा निम्न धारा की उच्च प्रत्यावर्ती वोल्टता को उच्च धारा की निम्न प्रत्यावर्ती वोल्टता में परिवर्तित किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में ट्रांसफार्मर वोल्टता को बढ़ाने अथवा घटाने में प्रयुक्त की जाने वाली युक्ति है। यह दो प्रकार के होते हैं-
(i) उच्चायी ट्रांसफार्मर- इसमें द्वितीय कुण्डली में लपेटे हुए घेरों की संख्या प्राथमिक कुण्डली से अधिक होती है। अर्थात् $N_S>N_p$
(ii) अपचायी ट्रांसफार्मर- इसमें द्वितीय कुण्डली में लपेटे हुए घेरों की संख्या प्राथमिक कुण्डली से कम होती है। अर्थात् $N _{ S }< N _{ P }$ 
किसी ट्रांसफार्मर में, $\frac{E_S}{E_P}=\frac{N_S}{N_p}$
सिद्धान्त- ट्रांसफार्मर अन्योन्य प्रेरण के सिद्धान्त पर आधारित युक्ति है। जब किसी कुण्डली में धारा परिवर्तित होती है, तो इसके निकट स्थित कुण्डली में विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है।
बनावट-ट्रांसफार्मर में दो कुण्डलियाँ होती हैं, जो एक-दूसरे से विघुतरुद्ध होती हैं। वे एक कोमल-लौह-क्रोड पर लिपटी होती हैं। लपेटने की विधि या तो चिंत्र (a) की भाँति होती है, जिसमें एक कुण्डली दूसरी के ऊपर लिपटी होती है या फिर चित्र (b) की भाँति जिसमें दोनों कुण्डलियाँ क्रोड की अलग-अलग भुजाओं पर लिपटी होती हैं। एक कुण्डली को प्राथमिक कुण्डली (primary coil) कहते हैं। इसमें N, लपेटे होते हैं। दूसरी कुण्डली को द्वितीयक कुण्डली (secondary coil) कहते हैं। इसमें N, लपेटे होते हैं। प्रायः प्राथमिक कुण्डली निवेशी कुण्डली होती है एवं द्वितीयक कुण्डली ट्रांसफार्मर की निर्गत कुण्डली होती है।
Image

चित्र-किसी ट्रांसफार्मर में प्राथमिक एवं द्वितीयक कुण्डलियों को लपेटने की दो व्यवस्थाएँ- (a) एक-दूसरे के ऊपर लपेटी गई कुण्डलियाँ
(b) क्रोड की अलग-अलग भुजाओं पर लिपटी कुण्डलियाँ।
(ब) (i) फ्लक्स क्षरण -कुछ फ्लक्स हमेशा क्षरित होता ही रहता है अर्थात् क्रोड के खराब अभिकल्पन या इसमें रही वायु रिक्ति के कारण प्राथमिक कुण्डली का पूरा फ्लक्स द्वितीयक कुण्डली से नहीं गुजरता है। प्राथमिक और द्वितीयक कुण्डलियों को एक-दूसरे के ऊपर लपेटकर फ्लक्स क्षरण को कम किया जाता है।
(ii) कुण्डलनों का प्रतिरोध-कुण्डलियाँ बनाने में लगे हुए तारों का कुछ न कुछ प्रतिरोध होता ही है और इसलिए इन तारों में उत्पन्न ऊष्मा (IR) के कारण ऊर्जा क्षय होता है। उच्च धारा, निम्न वोल्टता कुण्डलनों में नोटे तार का उपयोग करके इनमें होने वाली ऊर्जा क्षय को कम किया जा सकता है।
(iii) भँवर धाराएँ-प्रत्यावर्ती चुम्बकीय फ्लक्स लौह क्रोड में भँवर धाराएँ प्रेरित करके इसे गर्म कर देता है। स्तरित क्रोड का उपयोग करके इस प्रभाव को कम किया जाता है।
(iv) शैथिल्य क्षय-प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा क्रोड का चुम्बकन बार-बार उत्क्रमित होता है। इस प्रक्रिया में व्यय होने वाली ऊर्जा क्रोड में ऊष्मा के रूप में प्रकट होती है। कम शैथिल्य क्षय वाले पदार्थ का क्रोड में उपयोग करके इस प्रभाव को कम रखा जाता है।
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