अगर मैं श्यामा की जगह पर होती तो अपने परिवार को मनाने की कोशिश करती की वह मुझे भी पढ़ाई के लिए स्कूल जाने दें। मुझे भी पढ़ने-लिखने में सहयोग करें और मुझे भी दौड प्रतियोगिता आदि में भाग लेने दें और इनकी इस सोच को बदलने की कोशिश करती की लड़कियाँ सिर्फ घर के ही कार्य कर सकती है और पढ़-लिखकर वे क्या करेंगी, उन्हें तो बड़ी होकर चूल्हा ही फूंकना है।