अठारहवीं सदी में शहरों की स्थिति में बदलाव आने लगा। राजनीतिक तथा व्यापारिक गतिविधियों में परिवर्तन के साथ पुराने शहर पतनोन्मुख हुए और नए शहरों का विकास होने लगा। मुगल सत्ता के धीरे-धीरे कमजोर होने के कारण शासन से संबद्ध शहरों का पतन होने लगा। नई क्षेत्रीय शासन केन्द्र लखनऊ, हैदराबाद, सेरिंगापटम, पुणा, नागपुर, बड़ौदा आदि नये शहरी केन्द्रों के रूप में स्थापित होने लगे। व्यापारी, शिल्पकार, कलाकार, प्रशासक तथा अन्य विशिष्ट सेवा प्रदान करने वाले लोग इन नये शासक केन्द्रों की ओर काम तथा संरक्षण की तलाश में आने लगे । व्यापारिक व्यवस्था में परिवर्तन के कारण भी शहरी केन्द्रों में बदलाव के चिह्न देखे गये।
यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने मुगल काल में ही विभिन्न स्थानों पर अपने व्यापारिक केन्द्र स्थापित किए जैसे पुर्तगालियों ने गोवा में, डचों ने मछलीपट्टनम में, अंग्रेजों ने मद्रास (चेन्नई) में, फ्रांसीसियों ने पांडिचेरी (पुदुचेरी) में । व्यापारिक गतिविधियों में विस्तार के कारण इन व्यापारिक केन्द्रों के आस-पास शहर विकसित होने लगे । जब व्यापारिक गतिविधियां अन्य स्थानों पर केन्द्रित होने लगीं तब पुराने व्यापारिक केन्द्र और बंदरगाह अपना महत्त्व खोने लगे।