अठारहवीं शताब्दी में जनजातीय समाज पूर्णत: जंगल पर निर्भर . था। वे जंगलों में व उसके आस-पास रहते थे। उनके दैनिक उपयोग की अधिकांश जरूरतों की पूर्ति जंगलों से ही होती थी। वे जंगलों को साफ कर खेती योग्य जमीन तैयार करते थे । पशुपालन भी करते थे जिनका चारा उन्हें जंगलों से मिलता था। उनके घर भी जंगल की लकड़ियों के ही बने होते थे। कहने का तात्पर्य यह है कि तब जनजातीय समाज अपनी आजीविका व अस्तित्व के लिए पूर्णत: जंगलों पर निर्भर थे। जंगल की उपयोगिता उनके सारे कामों के लिए थी। र्षे जंगलों पर पूर्णतः निर्भर थे।