(a) जब धातु को परिवर्तनशील चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो भँवर धाराएं बनती हैं।
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एक श्रेणीबद्ध $\text{LCR}$ परिपथ में $C =10 \mu F$ एवं $\omega=1000$ सेकेण्ड ${ }^{-1}$ हैं। परिपथ में महत्तम धारा के लिये प्रेरकत्व $L$ का मान कितना होना चाहिये?
किसी परिपथ में प्रत्यावर्ती विद्युत धारा तथा वोल्टता के तात्क्षणिक मानों को क्रमशं: निम्न प्रकार निरुपित किया जाता है:
$
i=\frac{1}{\sqrt{2}} \sin (100 \pi t) \text { एम्पियर }
$ तथा $e=\frac{1}{\sqrt{2}} \sin (100 \pi t+\pi / 3)$ वोल्ट
तो, इस परिपथ में क्षयित औसत शक्ति वॉट में होगी।
एक कुंडली का स्व-प्रेरकत्व $L$ है। यह श्रेणी क्रम मे एक विद्युतबल्ब $B$ तथा एक ए.सी. (A.C.) स्रोत से जुड़ी है। इस बल्ब के प्रकाश की दीप्ति (तीव्रता) कम हो जायेगी, जब
एक ट्रांसफॉर्मर की दक्षता $90 \%$ है तथा यह $200 V$ व $3$ किलोवाट की पावर सप्लाई पर काम कर रहा है। यदि द्वितीयक कुण्डली से $6$ ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है तो, द्वितीयक कुण्डली के सिरों के बीच विभवान्तर तथा प्राथमिक कुण्डली में विद्युत धारा का मान क्रमशः होगा
एक ट्रान्सफॉर्मर को $220 V$ का निवेश दिया गया है। निर्गत परिपथ में $440$ वोल्ट पर $2.0 A$ की धारा प्रवाहित होती है। यदि ट्रांन्सफॉमर की दक्षता $80 \%$ हो तो ट्रान्सफार्मर की प्राथमिक कुंडली द्वारा ली गई विद्युतधारा है
एक धारा प्रवाहित कुण्डली जिसकी त्रिज्या 30 सेमी तथा प्रतिरोध $\pi^2 \Omega$ है को एक चुम्बकीय क्षेत्र $B =10^{-2} T$ वाले क्षेत्र में चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् घुमाया जातो है। यदि घुमाने की दर $200 rpm$ हो तो उत्पन्न प्रत्यावर्ती धारा का अधिकतम मान होगा:
$C$ धारिता के एक संधारित्र को $V_1$ विभवान्तर तक आवेशित किया गया है। फिर इसकी प्लेटों को एक $L$ प्रेरकत्व के एक आदर्श प्रेरक से जोड़ दिया गया है। जब संधारित्र के सिरों के बीच विभवान्तर कम होकर $V_2$ हो जाय तो प्रेरक से बहने वाली धारा होगी?