भूदान आन्दोलन-18 अप्रैल, 1951 में तेलंगाना के एक छोटे से गाँव तिरुचपल्ली में एक जमीन का टुकड़ा दान में दिया गया। यह भूदान आंदोलन की शुरुआत थी। इस आंदोलन का उद्देश्य जमीनी स्वामित्व की विषमता को दूर करके उपजाऊ भूमि के स्वमित्व को बढ़ावा देना था। इस आन्दोलन के अन्तर्गत, विनोबा भावे जमीन के स्वामियों से उनकी कुल जमीन का छठा हिस्सा दान में देने का आग्रह कर रहे थे। पूरे देश में लोगों ने इस आन्दोलन का समर्थन किया। दान में मिली जमीन को भूमिहीनों में बाँट कर स्वामित्व की विसंगति को दूर करने का सार्थक प्रयास किया गया। भूदान की सफलता-विनोबा भावे की भूदान अपील सार्थक हुई। विनोबा भावे ने सम्पूर्ण देश में पदयात्राएँ करके लाखों एकड़ जमीन का दान स्वीकार किया। उन्होंने इस भूमि के लगभग एक तिहाई भाग का उपयोग वंचित वर्ग और आदिवासी भूमिहीनों में बाँटने में किया। विनोबा की अपील पर राजस्थान के भी नागौर जिले में भूदान आरंभ किया गया तथा राज्य सरकार ने ग्रामदान अधिनियम, 1971 भी पारित किया।