दरिया साहब का कार्य क्षेत्र तत्कालीन शाहाबाद जिला था, जिसके अब चार जिले-भोजपुर, रोहतास, बक्सर और कैमूर हो गये हैं।
विचार से दरिया साहेब एकेश्वरवादी थे । इनका मानना था कि ईश्वर सर्वव्यापी है तथा वेद और पुराण दोनों में ही उसी का प्रकाश है । ईश्वर को. दरिया साहब ने निर्गुण और निराकार माना। इन्होंने अवतार और पूजा-पाठ को मानने से इंकार कर दिया । इन्होंने मात्र प्रेम, भक्ति और ज्ञान को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना।
इनके अनुसार प्रेम के बिना भक्ति असंभव है और भक्ति के बिना ज्ञान भी अधूरा है । इनका कहना था कि ईश्वर के प्रति प्रेम पाप से बचाता है और ईश्वर की अनुभूति में सहायक बनता है । ये मानते थे कि ज्ञान पुस्तकों में नहीं है, बल्कि चेतना में निहित है, जबकि विश्वास ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण मात्र है । दरिया साहब ने जाति-प्रथा, छुआछूत का विरोध किया । इनके विचारों पर इस्लाम का एवं व्यावहारिक पहलुओं पर निर्गुण भक्ति का प्रभाव दिखाई देता है । इनको मानने वालों में दलित वर्ग की संख्या अधिक थी।
दरिया साहब के विचारों को मानने वालों की सख्या आज के भोजपर, बक्सर, रोहतास और भभुआ जिलों में अधिक थी । उन्होंने वहाँ मठ की भी स्थापना की । इनके मानने वालों की संख्या वाराणसी में भी कम नहीं थी।
दरिया साहब के क्या उपदेश थे, उसे निम्नांकित अंशों से मिल सकते हैं: “एक ब्रह्म सकल घटवासी, वेदा कितेबा दुनों परणासी -1”. “ब्रह्म, विसुन, महेश्वर देवा, सभी मिली रहिन ज्योति सेवा।” “तीन लोक से बाहरे सो सद्गुरु का देश ।” “तीर्थ, वरत, भक्ति बिनु फीका तथा पड़ही पाखण्ड पथल का पूजा ।” दरिया साहब को बहुत हद तक कबीर का अनुगामी कहा जा सकता है।