रामानन्द के अनुयायियों काएक अन्य वर्ग उदारवादी अथवा निर्गुण सम्प्रदाय कहलाता है । इन निर्गुण भक्त संतों ने ईश्वर को तो माना लेकिन उसके किसी रूप को मानने से इंकार कर दिया। ये निराकार ईश्वर में विश्वास करते थे । निर्गुण भक्त संतों ने, जाति-पात, छुआछूत, ऊँच-नीच, मूर्ति-पूजा का घोर विरोध किया।
ये कर्मकांडों में भी विश्वास नहीं करते थे। निर्गुण भक्त संतों में कबीर को सर्वाधिक प्रमुख संत माना जाता है । ये एक मुखर कवि के रूप में भी प्रसिद्ध है । कबीर इस्लाम और हिन्दू-दोनों धर्म के माहिर जानकार थे । इन्होंने दोनों धर्मों के ढकोसलेबाजी की घोर भर्त्सना की । इनके विचार ‘साखी’ और ‘सबद’ नामक ग्रंथ में सकलित हैं । इन दोनों को मिलाकर जो ग्रंथ बना है उसे ‘बीजक’ कहते हैं।
कबीर के उपदेशों में ब्राह्मणवादी हिन्दु धर्म और इस्लाम धर्म, दोनों के आडम्बरपूर्ण पूजा-पाठ और आचार-व्यवहार पर कठोर कुठारापात किया गया । यद्यपि इन्होंने सरल भाषा का उपयोग किया किन्तु कहीं-कहीं रहस्यमयी भाषा का भी उपयोग किया है। ये राम को. तो मानते थे लेकिन इनके राम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र नहीं थे । इन्होंने अपने राम के रूप का इन शब्दों में बताया है :
“दशरथ के गृह ब्रह्म न जनमें, ईछल माया किन्हा ।” इन्होंने दशरथ के पुत्र राम को विष्णु का अवतार मानने से भी इंकार किया:
चारि भुजा के भजन में भूल पड़ा संसार । कबिरा सुमिरे ताहि को जाकि भुजा अपार गुरु नानक देव तथा दरिया साहेब निर्गुण भक्त संतों की परम्परा में ही थे।